क्या हुआ जो सपना टूट गया?
सपना टूट गया... अब सब कुछ खत्म हो गया और भविष्य अंधकारमय हो गया... आज के युवाओं को जरा-सी असफलता मिलने पर उनके मन में यही विचार आने लगते हैं और खासतौर पर अगर बात करियर की हो, तब मामला और भी गंभीर हो जाता है। स्वयं को किसी परीक्षा के लिए तैयार करना अपने आप में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मन मारने से लेकर मनोवैज्ञानिक तौर पर स्वयं को तैयार करने की बात आती है।
स्वयं के प्रति आशाओं और आकांक्षाओं का नया दौर आरंभ हो जाता है और उसी अनुसार युवा साथी अपने निर्धारित सपने को पूर्ण करने के लिए प्रयत्न करने लगते हैं, पर सभी को सफलता नहीं मिलती और असफलता से सामना हो ही जाता है। यह असफलता कई को भीतर तक तोड़ देती है, अवसाद उन्हें घेर लेता है और नैराश्य भाव में वे स्वयं को आखिरी नंबर पर देखने की आदत डाल लेते हैं।
एक युवक था जिसे डॉक्टर बनना था, क्योंकि पिता भी डॉक्टर थे। अब यह कहना कितना सच होगा कि उसे डॉक्टर ही बनना था। अब घर में पिता डॉक्टर है, तब बचपन से ही घर में उस पर डॉक्टर बनने का दबाव तो होना ही था। बॉयोलॉजी प्रमुख विषय लेने के बाद युवा साथी के मन में डॉक्टर बनने के सपने पलने लगे। १२वीं में अच्छे नंबर आए, पर मेडिकल की परीक्षा में पास नहीं हो पाया। घर वालों से लेकर अन्य लोगों ने गैप लेने का कहा। गैप भी ले लिया और तैयारी की, पर फिर भी नतीजा सिफर रहा।
घरवालों ने कहा कि एक बार और प्रयत्न कर लो, पर युवा साथी के मन में असफलता के डर ने इतना घर कर लिया था कि उसकी हिम्मत जवाब दे गई। वह अवसाद में आ गया, दाढ़ी बढ़ा ली और जीवन के तत्व आदि से संबंधित किताबें पढ़ने लगा। चुपचाप रहने लगा और घर से बाहर निकलने में भी उसे डर लगने लगा। उसने अपने आप को एक कमरे में सीमित कर लिया। पिता डॉक्टर थे इस कारण उनके पास समय की कमी रहती थी। फिर भी कुछ समय बाद पिता का ध्यान इस ओर गया और बेटे को कहा गया कि तुम निराश मत हो।
हम किसी निजी महाविद्यालय में डोनेशन के माध्यम से तुम्हें प्रवेश दिलवाएँगे, पर डॉक्टर तुम्हें जरूर बनाएँगे। यह बोलना था कि युवा साथी के मन को ऐसा धक्का लगा कि वह रोने लगा और उसने एक ही बात कही कि मैं डॉक्टर ही नहीं बनना चाहता। माता-पिता को लगा कि अब बेटे का क्या होगा? बेटे को काफी मुश्किल से अवसाद से बाहर लाए और कहा कि तुझे जो करना है वह कर।
उस युवा साथी ने मैनेजमेंट की पढ़ाई की ओर रुख किया। बैचलर की डिग्री हासिल करने के दौरान ही इकोनॉमिक्स और फाइनेंशियल मैनेजमेंट में उसने इतनी महारत हासिल कर ली कि न केवल व अपने अध्यापकों से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने लगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में क्या हो रहा है, इसकी भी उसे जानकारी होने लगी। बैचलर की डिग्री पूर्ण करते-करते उसने अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर अन्य देशों के बड़े विश्वविद्यालयों के बारे में जानकारी निकाल ली और वहाँ की प्रवेश परीक्षाओं के बारे में जानकारी हासिल कर ली थी और पहली बार में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान से कोर्स करने के बाद उस युवा साथी ने अमेरिका में ही वर्ल्ड इकोनॉमी के क्षेत्र में अपना करियर बनाया और नाम भी कमाया। दोस्तो, करियर की डगर में भेड़चाल चलना या दबाव में आकर ऐसे करियर के लिए प्रयास करते रहना, जिसमें आपका दिल न लगता हो, समय को व्यर्थ करना ही है। अपने आपसे लगातार प्रश्न करते रहें और जो स्वयं को अच्छा लगता है उसी करियर को अपनाएँ। दुनिया में डॉक्टर, इंजीनियर बनने के अलावा भी बेहतरीन विकल्प मौजूद हैं।
स्वयं के प्रति आशाओं और आकांक्षाओं का नया दौर आरंभ हो जाता है और उसी अनुसार युवा साथी अपने निर्धारित सपने को पूर्ण करने के लिए प्रयत्न करने लगते हैं, पर सभी को सफलता नहीं मिलती और असफलता से सामना हो ही जाता है। यह असफलता कई को भीतर तक तोड़ देती है, अवसाद उन्हें घेर लेता है और नैराश्य भाव में वे स्वयं को आखिरी नंबर पर देखने की आदत डाल लेते हैं।
एक युवक था जिसे डॉक्टर बनना था, क्योंकि पिता भी डॉक्टर थे। अब यह कहना कितना सच होगा कि उसे डॉक्टर ही बनना था। अब घर में पिता डॉक्टर है, तब बचपन से ही घर में उस पर डॉक्टर बनने का दबाव तो होना ही था। बॉयोलॉजी प्रमुख विषय लेने के बाद युवा साथी के मन में डॉक्टर बनने के सपने पलने लगे। १२वीं में अच्छे नंबर आए, पर मेडिकल की परीक्षा में पास नहीं हो पाया। घर वालों से लेकर अन्य लोगों ने गैप लेने का कहा। गैप भी ले लिया और तैयारी की, पर फिर भी नतीजा सिफर रहा।
घरवालों ने कहा कि एक बार और प्रयत्न कर लो, पर युवा साथी के मन में असफलता के डर ने इतना घर कर लिया था कि उसकी हिम्मत जवाब दे गई। वह अवसाद में आ गया, दाढ़ी बढ़ा ली और जीवन के तत्व आदि से संबंधित किताबें पढ़ने लगा। चुपचाप रहने लगा और घर से बाहर निकलने में भी उसे डर लगने लगा। उसने अपने आप को एक कमरे में सीमित कर लिया। पिता डॉक्टर थे इस कारण उनके पास समय की कमी रहती थी। फिर भी कुछ समय बाद पिता का ध्यान इस ओर गया और बेटे को कहा गया कि तुम निराश मत हो।
हम किसी निजी महाविद्यालय में डोनेशन के माध्यम से तुम्हें प्रवेश दिलवाएँगे, पर डॉक्टर तुम्हें जरूर बनाएँगे। यह बोलना था कि युवा साथी के मन को ऐसा धक्का लगा कि वह रोने लगा और उसने एक ही बात कही कि मैं डॉक्टर ही नहीं बनना चाहता। माता-पिता को लगा कि अब बेटे का क्या होगा? बेटे को काफी मुश्किल से अवसाद से बाहर लाए और कहा कि तुझे जो करना है वह कर।
उस युवा साथी ने मैनेजमेंट की पढ़ाई की ओर रुख किया। बैचलर की डिग्री हासिल करने के दौरान ही इकोनॉमिक्स और फाइनेंशियल मैनेजमेंट में उसने इतनी महारत हासिल कर ली कि न केवल व अपने अध्यापकों से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने लगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में क्या हो रहा है, इसकी भी उसे जानकारी होने लगी। बैचलर की डिग्री पूर्ण करते-करते उसने अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर अन्य देशों के बड़े विश्वविद्यालयों के बारे में जानकारी निकाल ली और वहाँ की प्रवेश परीक्षाओं के बारे में जानकारी हासिल कर ली थी और पहली बार में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान से कोर्स करने के बाद उस युवा साथी ने अमेरिका में ही वर्ल्ड इकोनॉमी के क्षेत्र में अपना करियर बनाया और नाम भी कमाया। दोस्तो, करियर की डगर में भेड़चाल चलना या दबाव में आकर ऐसे करियर के लिए प्रयास करते रहना, जिसमें आपका दिल न लगता हो, समय को व्यर्थ करना ही है। अपने आपसे लगातार प्रश्न करते रहें और जो स्वयं को अच्छा लगता है उसी करियर को अपनाएँ। दुनिया में डॉक्टर, इंजीनियर बनने के अलावा भी बेहतरीन विकल्प मौजूद हैं।