अक्सर हम जब खुद को मुश्किलों से घिरा पाते हैं तो हममें से कई लोगों के जहन में एक ही सवाल उठने लगता है कि 'ये जिंदगी भी क्या चीज है'। असल में जिंदगी की कई सारी डेफिनेशंस है और उनमें से सबसे प्रक्टिकल है कि 'जिंदगी गम और खुशी, आशा और निराशा, सफलता और विफलता का कॉकटेल है'।
संसार में हम अपने से अधिक दुखी व्यक्ति को देखते हैं तो अपना दुख छोटा नजर आता है। तसनीम के जीवन में 7वीं कक्षा के बाद अंधेरा छा गया। आंखों को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में रुकावट होने से धीरे-धीरे उसकी आंखों की रोशनी जाती रही और उसके भविष्य पर एक बड़ा शून्य उभर आया।
तीन-चार साल की कुंठा, हीनभावना से उबरकर उसने अपने को संभालते हुए पुनः पढ़ाई शुरू की। 12वीं परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ग्रेजुएट हो गई एवं दृष्टिबाधितों के लिए विशेष कंप्यूटर कोर्स किया। आज वह किसी कंपनी में कार्यरत है एवं अपने भाई की पढ़ाई का खर्च भी उठा रही है।
ये कुछ ऐसे लोगों के उदाहरण हैं जिन्होंने दुख के आगे भी घुटने नहीं टेके। व्यक्ति के जीवन में ऐसी कई घटनाएं आती हैं। ऐसी स्थिति में यदि अपने भाग्य को कोसते रहें एवं दुखों का मातम मनाते रहें तो घर का माहौल तो खराब होता ही है, साथ ही, यह तिल-तिलकर मरने जैसा भी है। ऐसे में यदि हिम्मत से कार्य करें तो कोई-न-कोई रास्ता निकल आता है। ऐसा कहते हैं कि ईश्वर एक हाथ से मारता है तो दूसरे हाथ से सहायता भी करता है।
ऐसी दुख की स्थिति में आवश्यक है :
* व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कठिनाइयों का मुकाबला करे तो विपरीत स्थितियों में भी सफल हो सकता है।
* भगवान में आस्था रखें। हमेशा स्वयं की कल्पना ऐसे करें कि आप भगवान की सहायता से सफल हो रहे हैं एक अदृश्य शक्ति आपके साथ है। इस सोच से तनाव व चिंताएं कम होंगी।
* सकारात्मक चिंतन करें। इससे ऐसा आत्मबल पैदा होता है जो सफलता की राह में आने वाली चट्टानों को उखाड़ फेंकता है।
* जब भी निराशा और नकारात्मकता पैदा हो अपना ध्यान किसी सकारात्मक गतिविधि में लगाएं।
* सदैव किसी-न-किसी कार्य में व्यस्त रहें। एक कहावत है 'खाली दिमाग शैतान का घर'।
* दुख एवं सुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह जान लें।