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ं कि नोबेल मिलते ही उनके मेल बॉक्स में अचानक भारत से बधाई मेसेज भेजने वालों का सैलाब उमड़ आया है, जिससे उनका ईमेल बॉक्स बार-बार भर जाता है।
उनका कहना है कि हर रोज ऐसी मेल को अपने मेल बॉक्स से डिलीट करने में मुझे एक-दो घंटे लग जाते हैं। इन मेल्स के बीच मेरी जरूरी मेल्स भी होती हैं, जिन्हें छांटने में बहुत मुश्किल होती है।
पीटीआई को दिए एक ईमेल इंटरव्यू में 57 साल के वेंकी लगभग ने बरसते हुए कहा कि इन लोगों को कुछ अक्ल है कि नहीं? यह ठीक है कि इस इवेंट पर आपको गर्व महसूस हो रहा है, लेकिन मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं?
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ईमेल की बरसात के अलावा भारतीय मीडिया में उनके नोबेल जीतने के बाद जिस तरह की खबरें छप रही हैं, उन्हें लेकर भी वेंकी बेहद खफा हैं। उन्होंने एक अखबार में छपी झूठी खबर का जिक्र किया कि उसमें यह छपा था कि 1952 में तमिलनाडु के टेंपल टाउन चिदंबरम में मेरा जन्म हुआ और वहीं के स्कूल में मैं पढ़ा। वेंकी के शब्दों में - ऐसे-ऐसे लोग पता नहीं कहां से आ जाते है, उदाहरण के लिए कोई मिस्टर गोविंदराजन हैं, उनका दावा है कि वह अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में मेरे टीचर थे और मुझे पढ़ाकर उन्हें बहुत अच्छा लगता था।
उन्होंने बताया कि सच तो यह है कि मैं उस यूनिवर्सिटी में कभी पढ़ता ही नहीं था। मैं चिदंबरम में कभी पढ़ा ही नहीं। मैंने तो तीन साल की उम्र में ही वह जगह छोड़ दी थी।
वेंकी का कहना था कि कितना अच्छा होता कि मेरे नोबेल प्राइज जीतने के बाद लोग मेरे काम के बारे में पढ़ने को प्रेरित हुए होते या बुक्स पढ़ने लगते या साइंस में दिलचस्पी लेते। लेकिन यहां पर निजी तौर पर मैं अहम नहीं हूं। और यह सच कि मैं एक भारतीय मूल का साइंटिस्ट हूं, यह तो और भी कम अहम है। हम सब इंसान हैं और हमारी नागरिकता महज इत्तफाक है।
इस रिपोर्ट पर कि उन्हें भारत में नौकरी के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया है, वेंकी ने कहा कि वह कैंब्रिज की लैब में नौकरी करते हुए काफी खुश हैं और यह नौकरी छोड़कर भारत जाने का उनका कोई मूड नहीं है। वह बोले - मुझे वैसे तो अब तक कोई ऑफर नहीं है, लेकिन आएगा भी तो फौरन मना कर दूंगा। मैं यहां अपने काम को जितना इंजॉय कर रहा हूं, उतना कहीं और कर ही नहीं सकता। हां बेंगलुरु जाता रहूंगा, वहां इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में मैं विजिटिंग प्रोफेसर हूं और हर साल कुछ हफ्तों के लिए जाता हूं।
नई दिल्ली।। नोबेल प्राइज जीतने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी साइंटिस्ट वेंकटरामन रामकृष्णन भारतीयों से परेशान हैं। वह इस बात पर नाराज है