new direct code code-not beneficial for common people

shailesh agarwal (professional accountant)   (7642 Points)

24 August 2009  

 नए डायरेक्ट टैक्स कोड से आम लोगों पर पड़ेगी मार



24 Aug 2009, 1741 hrs IST,ईटी हिंदी  



 

 

सुप्रिया वर्मा 



आम करदाता, छोटे निवेशक और इंडिया इंक सबकी जेब पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का प्रस्तावित टैक्स कोड भारी



 पडे़गा। नए कोड से सब पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा, ईटीआईजी का मानना है कि ऐसे में यह कोड अपने मकसद में शायद कामयाब न हो पाए। 







आइए जानें क्या हैं वे वजहें कि यह आम लोगों के लिए चाबुक का काम करेगा। जानकारों की राय में तो यह भारत के हक में है ही नहीं। 







यूपीए सरकार दावा करती आई है कि उसकी नीतियों के केंद्र में देश का आम आदमी है। क्या सरकार का यह दावा खोखला है? नए डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) से तो यही लगता है कि आम आदमी के हितों का यूपीए सरकार का दावा हवाई है। यह कोड मध्यवर्ग के खिलाफ है। इस कोड का मकसद ज्यादातर करदाताओं पर टैक्स का बोझ बढ़ाना है। यही नहीं डीटीसी कम आय वर्ग वाले लोगों के लिए ज्यादा बुरा है। 







इससे उन पर टैक्स का बोझ और बढ़ेगा वहीं इससे ज्यादा होगा। अभी तक 5 लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी पर 30 फीसदी कर लगता था, इस स्लैब को बढ़ाकर 25 लाख रुपए करने का प्रस्ताव है। 







सबसे ज्यादा चर्चा इसी की हो रही है। नए कोड में सरचार्ज और सेस को खत्म करने की भी बात कही गई है। लेकिन नए कोड का दूसरा पहलू आम करदाताओं के हक में नहीं है। अभी टैक्स छूट के दायरे में शामिल होम लोन पर चुकाए गए ब्याज, हाउस रेंट अलाउंस, लीव ट्रैवल अलाउंस, मेडिकल रिम्बर्समेंट को इससे बाहर कर दिया जाएगा या इन्हें टैक्स लायक आमदनी माना जाएगा। 







यहां हम 3 सैलरी लेवल के लिए नए टैक्स कोड का मतलब समझने की कोशिश कर रहे हैं। इन सभी के लिए हमने यह माना है कि तनख्वाह की 10 फीसदी से ज्यादा रकम पर उन्हें आयकर छूट नहीं मिलेगी। बेसिक सैलरी हमने कुल सैलरी का 40 फीसदी तय किया है। हमने बेसिक सैलरी का 50 फीसदी एचआरए के मद में रखा है। 4 बडे़ मेट्रो में आयकर कानून के मुताबिक बेसिक सैलरी का 50 फीसदी एचआरए तय किया जाता है। होम लोन के लिए हमने 1.5 लाख रुपए और आयकर छूट के तहत 1.6 लाख रुपए की मान्य सीमा को शामिल किया है। 







आयकर कानून की धारा 80सी के तहत कर छूट योग्य आमदनी, जो फिलहाल 1 लाख रुपए है, वह प्रस्तावित कोड के मुताबिक 3 लाख रुपए हो जाएगी। लेकिन पेंच यह है कि जिस आदमी की तनख्वाह 5 लाख रुपए सालाना है, अगर वह टैक्स छूट के लिए 3 लाख रुपए निवेश करता है तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं बचेगा। ऐसे में हमने कर छूट के लिए निवेश को यहां 1.5 लाख रुपए माना है। आंकड़े बताते हैं कि इस आधार पर 5-6 लाख रुपए की सालाना आमदनी वाले लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा। हालांकि, 10 लाख रुपए से ज्यादा तनख्वाह वाले लोगों पर टैक्स का बोझ नए कोड के मुताबिक कम हो सकता है। 







नए टैक्स कोड से माइक्रो लेवल पर यह लगता है कि इससे लोगों के हाथ में खर्च करने लायक ज्यादा रकम बचेगी। नए कोड के तहत इफेक्टिव टैक्स रेट आम करदाताओं के लिए 5-6 फीसदी होगा। हालांकि नए कोड का सबसे ज्यादा फायदा ऊपरी स्लैब में शामिल लोगों को मिलेगा। ऐसे में इसका लाभ ऊपरी मध्यवर्ग लोगों की जरूरतें पूरी करने वाली कंपनियों को मिल सकता है। इनमें एफएमसीजी, एंटरटेनमेंट, रीटेल, वित्तीय सेवाओं और दूसरे लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों को शामिल किया जा सकता है। वहीं, इससे रियल्टी और एनबीएफसी को नुकसान होगा। 







हालांकि, यहां यह भी याद रखने की जरूरत है कि नया डायरेक्टर टैक्स कोड 1 अप्रैल 2011 से लागू होगा। उससे पहले इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी है। अगले दो साल में इस टैक्स कोड में काफी बदलाव भी आ सकता है।