क्या कहें...........
बात महफ़िल में चल रही है कही,
रात लड़की टहल रही थी कही,
मिल गया लोगों को चर्चा का विषय ,
इंसानियत खुद ही जल रही है कही,
क्या हुआ ,क्यों हुआ अनजान रहा,
अन्याय ,न्याय को छल रही है कही,
आयें आगे तो न्याय के रक्षक ,
आग पे दाल गल रही है कही,
कहने को हाँ जगा आवाम मगर,
रात करवट बदल रही है कही,
ढोल -डफली से कई राग उठे,
सच की जब शाम ढल रही है कही,
हुआ पहले भी था,और हो है रहा,
सच का परिचय बदल रहा है कही,
झूठ -लालच के ताप पे यारों,
सच की फिर बर्फ गल रही है कही ...
कर्टिसी-ओम कुमार