happy narsimha jayanti to all the members of cci

CA ADITYA SHARMA (CA IN PRACTICE ) (16719 Points)

16 May 2011  

वैशाख शुक्ल चतुर्थी को सम्पूर्ण विश्व की आत्मा, विश्वस्वरुप भगवान विष्णु अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नृसिंह रुप में प्रकट हुए थे. तभी से भगवान नृसिंह की यह प्राकट्य तिथि महोत्सव बन गई. प्राचीन कथा के अनुसार राजा कश्यप के हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दो पुत्र थे. हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर मार ड़ाला था, क्योंकि वह पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था. भाई की मौत का बदला लेने के लिए हिरण्याकशिपु ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या की. प्रसन्न हो भगवान शिव ने उसे वर मांगने को कहा. हिरण्याकश्यप बोला - मैं न अन्दर मरु, न बाहर मरु. न दिन में मरु, न रात में. न भूमि पर मरु न आकाश में, न जल में मरु न अस्त्र शस्त्र से. न मनुष्यों के हाथों मरु न पशु द्वारा मरु.

भगवान शिव मुस्कुराकर बोले - तथास्तु !

वरदान पाकर हिरण्यकशिपु बहुत अहंकारी हो गया. अब वह अपने आप को अजर - अमर समझने लगा. इसी अहंकार वश उसने अपने आप को ही भगवान घोषित कर दिया. जो भी उसे ईश्वर मानने से इंकार करता हिरण्याकशिपु उसे बहुत कठोर दण्ड़ देता. उसके अत्याचार इतने अधिक बढ़ गये कि चारों त्राहिमाम मच गया. इसी समय उसके घर एक बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया. राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी बालक प्रह्लाद को बचपन से ही श्री हरि भक्ति से गहरा लगाव था. हिरण्याकशिपु ने बालक प्रह्लाद के मन से हरि भक्ति हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए बहुत सी चाले चली, किन्तु श्री हरि भक्त बालक प्रह्लाद अपने मार्ग से नही ड़िगा. तब हिरण्याकशिपु ने बालक प्रह्लाद की हत्या का षड्यन्त्र रचा, परन्तु इसमें भी उसे असफ़लता ही मिली. इससे बालक प्रह्लाद का भगवान में विश्वास और अधिक बढ़ता गया.

हिरण्याकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका से जलवाने की कोशिश की. होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में जल नही सकती, किन्तु यहाँ भी उसे असफ़लता ही मिली. प्रह्लाद तो बच गया पर होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई. जब हिरण्याकशिपु का प्रयास विफ़ल हो गया तो एक दिन क्रोध से आग - बबूला होकर उसने तलवार निकाली और प्रह्लाद से पूछा - बता तेरा भगवान कहा है. प्रह्लाद बोला - पिताजी भगवान सब जगह हैं. हिरण्याकशिपु बोला - यदि तेरा भगवान सब जगह है तो इस खम्भे में भी होगा ? प्रह्लाद बोला - हाँ पिताजी भगवान इस खम्भे में भी हैं. ऐसा सुनते ही हिरण्याकशिपु ने क्रोध से तमतमाते हुए, तलवार खम्भे पर मारी. तभी खम्भे को चीरकर भगवान प्रकट हो गये. भगवान नृसिंह ने हिरण्याकशिपु को पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती नाखूनों से फ़ाड़ ड़ाली. बालक प्रह्लाद के कहने पर भगवान ने उसे मोक्ष प्रदान किया, तथा बालक की भक्ति से प्रसन्न हो उसे वरदान दिया की आज के दिन जो भी मेरा यह व्रत करेगा, वह सभी पापों से मुक्त हो परमधाम को प्राप्त होगा.

पूजन विधि- प्रातः काल में भगवान नृसिंह के सामने उनकी पूजा का संकल्प लें. संकल्प इस प्रकार लें. - हे भगवन् आज मैं आपका व्रत करुंगा. इसे निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण कराईये. इसके बाद प्रातः कालीन सारे कार्य पूर्ण करके व स्नानादि के बाद पूजन - स्थल लीपकर उसमें सुन्दर अष्टदल कमल बायें. कमल के ऊपर चावलों से भरा हुआ पात्र रखें और पात्र में अपनी शक्ति के अनुसार सोने की लक्ष्मी सहित भगवान नृसिंह की प्रतिमा बनवाकर स्थापित करें. तत्पश्चात् उसे उसे पंचामृत से स्नान करायें. पूजा के स्थान पर एक मण्ड़प बना बनाकर उसे फ़ूलों के गुच्छों से सजा दें. फ़िर उस ऋतु में सुलभ होने वाले फ़ूलों से षोड़्शोपचार की सामग्रियों से विधिपूर्वक भगवान श्री नृसिंह का पूजन करें. एक बड़ा दीपक पूजा की समाप्ति तक जला कर रखें. जो अज्ञानरुपी अन्धकार का नाश करने वाला होता है. जौ, चन्दन, कपूर, रोली, पुष्प तथा तुलसी दल भगवान श्रीनृसिंह को अर्पण करना चाहिए. फ़िर घण्टे की आवाज के साथ श्रद्धा पूर्वक भगवान की आरती उतारनी चाहिए.

इस मंत्र के द्वारा भगवान को नैवेद्य के लिए निवेदन करें.

नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् । ददामि ते रमाकान्त सर्वपापक्षयं कुरु ।।

दिन में पूजन के बाद रात्रि में भी भगवान का भजन कीर्तन करते रहना चाहिए. भगवान नृसिंह की कथा से सम्बंधित पौराणिक प्रसंग का भी पाठ करना चाहिए. प्रातः काल फ़िर श्रद्धा व भक्ति पूर्वक भगवान का पूजन करें. ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देकर विदा करें. इस प्रकार जो व्रती श्रद्धा व नियम पूर्वक भगवान नृसिंह की पूजा करता है वह मनोवांछित फ़लों की प्राप्ति करता रहता है. इतना ही नही, उसे सनातन मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.