Eid greetings

JIGYASOO RATHORE (n) (420 Points)

30 August 2011  

 

सभी मित्रों एवं शुभचिंतकों को ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद। अल्लाह से दुआ है कि यह ईद ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरे आलम में चैन-अमन एवं खुशियां लेकर आए....... आमीन!



वैसे तो ईद का मतलब त्यौहार होता है और इस लिहाज़ से हर त्यौहार ईद ही कहलाएगा। चाहे वह यौम-ए-आज़ादी (स्वतत्रंता दिवस) हो अथवा दीपावली। मतलब अरबी में दीपों के त्यौहार को ईद-उल-दिवाली कहा जाएगा!



इस  ईद है इसका नाम है ईद-उल-फित्र, यानी रमज़ान के पवित्र महीने के सभी रोज़े रखने की ख़ुशी मानाने  का त्यौहार। यह ईद माह-ए-रमज़ान के बाद आती है और रोज़ेदारो के लिए तोहफा होती है। रमज़ान के महीने में रोज़े रखे जाते हैं जिनके द्वारा धैर्य, विन्रमता और अध्यात्म को आत्मसात किया जाता है। 



रोज़े रखने के मक़सदों में से एक अहम मकसद ज़कात की अदायगी भी है। हर मुसलमान को रमज़ान के महीनें में अपनी ज़कात का पूरा-पूरा हिसाब लगा कर उसे अदा करना होता है, जो कि कुल बचत की 2.5 प्रतिशत होती है। जब कोई रोज़ा रखता हैं तो और बातों के साथ-साथ उसे भूख का भी अहसास होता है और साथ ही साथ अहसास होता है कि जो लोग भूखे-प्यासे हैं, अपनी बचत में से उन तक उनका हक यानि ज़कात पूरी-पूरी पहुचाई जाए। और इस अहसास के बाद यह आशा की जाती है कि सभी अपनी पूरी ज़कात अच्छी तरह से हिसाब लगा कर हकदारों तक पहुंचाएगा। अगर ज़कात बिना हिसाब-किताब के केवल अन्दाज़ा लगा कर ही दे दी गई तो ज़कात अदा नहीं होती है। वहीं अगर उसके हकदार यानि सही मायने में ज़रूरत मंद तक नहीं पहुंचाई गई और यूँ ही दिखावे करके मागने वालों को दे दी गई तब भी वह अदा नहीं होती है।



इसका मतलब यह हुआ कि बिना सोचे समझे ज़कात दे देने से फर्ज़ अता नहीं होता है। अगर किसी को अपनी कमाई में से हिस्सा दिया जाता है तो पूरी तरह छानबीन करके ही दिया जाना चाहिए। अक्सर लोग यतीम और गरीब बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण में लगे मदरसों को ज़कात देना उचित समझते हैं। लेकिन वहां भी यह देखा जाना ज़रूरी है कि वहां पढ़ाई तथा रहन-सहन उचित तरीके से हो रहा हो। अर्थात पैसों का सदुपयोग सुनिश्चित होना आवश्यक है, वर्ना ज़कात अदा नहीं होगी और दुबारा देनी पड़ेगी।



ईद की खुशियां चांद देखकर मनाई जाने लगती हैं। ईद का चांद बेहद खूबसूरत और नाज़ूक होता है, तथा थोड़ी देर के लिए ही नमूदार (दिखाई) होता है। ईद के चांद और चांदरात पर तो शायरी की ढेरों किताबें लिखी गई हैं। इस दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठ कर नहाने के बाद फज्र की नमाज़ अता करते हैं। क्योंकि यह दिन रमज़ान के महीने की समाप्ती पर आता है इसलिए इस दिन रोज़ा रखना मना होता है। इसलिए सुबह थोड़ा बहुत नाश्ता किया जाता है, इसमें सिवंईया, खजला, फैनी, शीर तथा खीर जैसे मीठे-मीठे पकवान बनाए जाते हैं। उसके बाद ईद की नमाज़ की तैयारी की जाती है। ईद की नमाज़ से पहले हर इन्सान का फितरा अता किया जाना आवश्यक होता है। फितरा एक तयशुदा रकम होती है जो कि गरीबों को दी जाती है। ईद की नमाज़ वाजिब होती है, अर्थात इसको छोड़ना गुनाह होता है। ईद की नमाज़ पूरी होने के बाद सिलसिला शुरू होता है एक-दुसरे से गले मिलने का, जो कि ख़ास तौर पर पुरे दिन चलता है और बदस्तूर पुरे साल जारी रहता है। और हाँ, घर पहुँच कर बच्चे ईदी के लिए झगड़ने लगते हैं, इस प्यार भरी तकरार के ज़रिये बच्चों को पैसे अथवा तोहफा के रूप में ईदी लेने में बड़ा मज़ा आता है। जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।



ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।

अल्लाह से दुआ है कि यह ईद ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरे आलम में चैन-अमन एवं खुशियां लेकर आए....... आमीन!