Dedicated to all the female members of CCI !!

Page no : 7

Rahul Sharma (Student + A.M.- Finance)   (2530 Points)
Replied 09 March 2011

All Credit are goes to Mr.Pulkit for a Great Article

Comments--- Sorry for Late reply on this post


Balu Bhaiya -- Very Nice define by you.....

Gourav - Be-Lated Happy B'Day

Wishes- All wishes comes are true for this year


And Thanks for All Female Memeber of CCI..............Happy Womens Day


Salute for All female member------Allready difine by Balu Bhaiya and Geeta, Sneha-2, Tina, RIya, Shruti, aur aap sab.........

1 Like

CS Ankur Srivastava (Company Secretary & Compliance Officer)   (17853 Points)
Replied 09 March 2011

Very nice Article Pulkit...

Keep going....
 

1 Like

CA SURENDRA KUMAR RAKHECHA (Practising CA at Surat) (26263 Points)
Replied 10 March 2011

After reading all the comments I am glad to say that  real education is to respect the feelings of all and cci members are at right direction.

.

When one goes for meditation; he/she finds no gender difference. While doing  meditation; if you  can still feel I am a boy or a girl; means you have  not yet  experienced the ( real value of ) meditation. 

.

When one dies; we can't say which type of "soul" has left the body.  And when "soul" leaves the body; body is nobody.  

.

So important is the feeling of soul which lies in everyone. 


3 Like

Vikash Maheshwari (learner) (6358 Points)
Replied 10 March 2011

great dedication to all the women............par i feel we dont need a particular day to wish women in our lives and tell them how imp they are to our lives.............for me 24/7....365 days is women's day............for wat evr i m today is bcoz of two very spl women in my life...my mom and my sis............

we are not doing a favour to them by celebrating and wishing them happy women's day............and i feel we should treat all as equals ..........that is evryone's birth right and we are not doing extra ordinary favour to anyone in recognizing it.............it's sad that our culture and psyche has been built like this ........that we feel men are superior than women........and it's bitter truth to accept that evn today we live in a male dominated society............it's embedded in our system frm tym immortal and it'll definitely take some tym to get over it...........it's a slow process...but it feels great when ppl like u dedicate such a lovely article for women and show so much respect for thm...replies from male counterparts have been heart whelmin........ppl like u will be the agents of change............we have a long way to go........and we all will move together ......hand in hand........so a grand salute to all the women .............with out u all .....our lives wud b meaningless.........wishu all a happy and smiling life ..........

 

3 Like

CA SURENDRA KUMAR RAKHECHA (Practising CA at Surat) (26263 Points)
Replied 11 March 2011

 

One of our Regional Council Member has forwarded me the following message : 

This is a beautiful article:
The woman in your life...very well expressed...

Tomorrow you may get a working woman, but you should marry her with these facts as well.

Here is a girl, who is as much educated as you are;
Who is earning almost as much a s you do;

One, who has dreams and aspirations just as
you have because she is as human as you are;

One, who has never entered the kitchen in her life just like you or your Sister haven't, as she was busy in studies and competing in a system that gives no special concession to girls for their culinary achievements.

One, who has lived and loved her parents & brothers & sisters, almost as much as you do for 20-25 years of her life;

One, who has bravely agreed to leave behind all that, her home, people who love her, to adopt your home, your family, your ways and even your family, name.

One, who is somehow expected to be a master-chef from day #1, while you sleep oblivious to her predicament in her new circumstances, environment and that kitchen.

One, who is expected to make the tea, first thing in the morning and cook food at the end of the day, even if she is as tired as you are, maybe more, and yet ne ver ever expected to complain; to be a servant, a cook, a mother, a wife, even if she doesn't want to; and is learning just like you are as to what you want from her; and is clumsy and sloppy at times and knows that you won't like it if she is too demanding, or if she learns faster than you;

One, who has her own set of friends, and that includes boys and even men at her workplace too, those, who she knows from school days and yet is willing to put all that on the back-burners to avoid your irrational jealousy, unnecessary competition and your inherent insecurities;

Yes, she can drink and dance just as well as you can, but won't, simply Because you won't like it, even though you say otherwise

One, who can be late from work once in a while when deadlines, just like yours, are to be met;

One, who is doing her level best and wants to make this most important, relationship in her entire life a grand success, if you just help her some and trust her;

One, who just wants one thing from you, as you are the only one she knows in your entire house - your unstinted support, your sensitivities and most importantly - your understanding, or love, if you may call it.

But not many guys understand this......

Please appreciate "HER"

I hope you will do....

With Best Regards,
 
CA. PARAG RAVAL, Ahmedabad
2 Like



(Guest)

Source: Email

.

महिला उत्पीड़न : इंसाफ ! ढूंढते रह जाओगे – डा.गोपा बागची


महिला दिवस के मौके पर हम महिलाओं के अधिकारों और जागरुकता के लंबे चौडे समारोह-भाषण करके अपनी गिनती कुछ खास लोगों में कर लेते हैं। आधी आबादी के सरोकारों पर चर्चाएं सभी को पसंद आती हैं। नये दौर में महिलाओं के पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने की मिसालें रखने में हम पीछे नहीं हटते। महिलाओं के शिखर पर पहुंचने और विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों को गिनाकर गौरव का अनुभव करते हैं। सरकारें भी महिला अधिकारों के संरक्षण और उनके जागरुकता के लिये कार्यक्रम गिनाने में देर नहीं करती। गैर-सरकारी संगठन भी इन सरकारों के पीछे-पीछे महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा प्रस्तुत करते हैं। बालीबुड की बालाओं का आकर्षण और तथाकथित आधुनिकता की हवा में सांस लेती महिलाओं की फैशनपरस्ती से यह लगता है कि महिलाएं काफी आगे निकल चुकी हैं। महिलाएं, अब अबला नहीं रह गई हैं। यह एक भ्रम हो सकता है, सच्चाई नहीं।

 

 

पिछले कुछ सालों में महिलाओं के प्रति बढ़ती बर्बरता और अत्याचार के किस्सों ने सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हम वाकई सभ्य समाज का हिस्सा हो चुके हैं। यह तो गर्व की बात हो सकती है कि देश के सर्वोच्च पद पर एक महिला को राष्ट्रपति होने का सम्मान मिला। लोकसभा की अध्यक्ष भी एक महिला है, नेता प्रतिपक्ष भी एक महिला है। देश में सत्ता की प्रमुख पार्टी की कमान भी एक महिला के हाथों में है। कुछ राज्यों में महिलाएं मुख्यमंत्री के पदों पर आसीन हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी महिलाएं सेवाएँ दे रही हैं। शायद स्त्री विमर्श का सबसे बड़ा पहलू भी यही है कि इतने विविध और महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं के होने के बावजूद महिलाओं के उत्पीडन-प्रताडना के मामलों में गिरावट क्यों नहीं आई, इसका ग्राफ बढ़ता ही क्यों गया। घर से लेकर आफिस तक, आंगन से खेतों तक महिलाओं के उत्पीडन के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ताजा चौंकाने वाला मामला जबलपुर के एक मेडिकल कालेज में लड़कियों को पास कराने के नाम पर कालेज के अधिकारियों द्वारा यौन-शोषण को लेकर सामने आया है। शहरों की पाश कालोनियों और कुछ खास किस्म के साइबर कैफे, ब्यूटी पार्लर, होटल्स आदि ऐसी जगहें जहां महिलाओं के शोषण के मामले तेजी से उभर रहे हैं। यह उत्पीड़न किसी एक प्रकार का नहीं है, इस उत्पीड़न में दहेज, अश्लीलता, लज्जा भंग, व्यपहरण, अपहरण, नारी के प्रति क्रूरता, मानसिक कष्ट देना, ब्लात्संग, प्रकृति विरुद्ध अपराध के लिये विवश करना, अशिष्ट रुपण, औद्योगिक क्षेत्रों में नारी की दशा आदि आते हैं। कार्यस्थल पर होने वाले कुछ व्यवहारों से भी महिलाएं स्वयं को असहज और असुरक्षित पाती हैं। कुछ मामलों में अनेक ख्यातिलब्ध महिलाओं ने भी अपने साथ होने वाले कतिपय व्यवहारों पर गहरा असंतोष जताया है। ब्यूरोक्रेसी वाले सिस्टम में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी अतिक्रमण होता रहा है। कई शैक्षणिक संस्थानों का माहौल भी महिलाओं के सम्मान की रक्षा को लेकर उपेक्षा रखता है।

 

 

 

ऐसा क्या है कि हम महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा और संरक्षण में किसी कारगर कदम की तरफ नहीं बढ़ पाते। कुछ दिनों पहले कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन का विधेयक तैयार किया गया है, इस विधेयक में महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के कुछ बिन्दुओं पर विचार चल रहा है। अभी इसे कानून बनने में वक्त लग सकता है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं के उत्पीडन के मामले में कोई कानून नहीं है। भारतीय कानून और हमारे धर्म समाज में महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिये कई व्यवस्थाएं दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार विशाखा एक्ट के तहत महिलाओं को यौन उत्पीड़न के मामलों में गंभीरता से लेने की बात कही गई है। जिसमें जिलों के कलेक्टर और ऐसी समस्त संस्थाओं में जो विधि सम्मत हैं उन्हें अपने विभागों में यौन उत्पीड़न समिति गठित करके महिलाओं को न्याय दिलाने के निर्देश है। दुर्भाग्य यह है कि इस कानून के प्रति गंभीरता किसी सरकार में नहीं है। फिर समस्या यह भी है कि इन व्यवस्थाओं में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिये संवेदनशीलता की कमी है। महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने में मीडिया जितनी आवाज उठाता है, उतना ही न्याय महिला के हिस्से में आता है। मीडिया चुप्प, तो न्याय भी खत्म।

 

 

 

महिलाओं के उत्पीड़न के मामलों को सुनने और समुचित न्याय दिलाने के लिये राज्य महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग की सक्रियता से कुछ आस बनती है। किन्तु इन आयोगों की सुनवाई और निर्णयों को गंभीरता से नहीं लिया जाता हैं। महिला उत्पीड़न के मामलों में महिला संगठनों की स्थिति शून्य की तरह है, ये संगठन कभी सक्रिय नहीं हो पाते और न ही किसी मामले का संज्ञान स्वयं से लेते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां नक्सली अत्याचारों से पुलिस महकमों के शहीद परिवारों की महिलाओं और मारे जाने वाले आदिवासी पुरुषों की महिलाओं की सुध लेने वाले नारी संगठन का अभाव कष्टप्रद है। छत्तीसगढ़ में ही ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें टोना टोटका के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है, इन पीड़ित ग्रामीण महिलाओं की सुध लेने का भी काम नहीं होता है। पुलिस में शिकायत देने पर कार्रवाई के नाम पर हीला हवाला समझ से बाहर है और यदि शिकायत किसी अधिकारी की हो तो न्याय की उम्मीद ही छोड़ दीजिये। सही मायनों में महिलाओं के साथ होने वाले प्रताड़ना के मामलों पर प्राथमिकता से कार्रवाई होना चाहिये, क्योंकि कोई महिला किसी शिकायत को लेकर पुलिस थाने तक आती है तो उसे कितने अवसाद से गुजरना पड़ता है वह पीड़ा कोई दूसरा महसूस नहीं कर सकता है। एक महिला होने का अर्थ उसके बच्चे, परिवार और माता-पिता के समूचे अंग से होता है, एक महिला की पीड़ा से उसके पूरे परिवार की पीड़ा और दर्द का रिश्ता होता है। एक महिला की प्रताड़ना पर उसके कई अंगों पर हमला होता है, इसलिये ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की उदासीनता बरतना या उसे सामान्य मामला समझकर छोड़ देना सबसे बड़ा अपराध है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जहां किसी लड़की या महिला पर छींटाकशी या टीका-टिप्पणी उसे आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर देती है। इसके उदाहरण में कई रुचिकाएं हैं।

 

 

 

बहरहाल ये सच है, कि महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसक घटनाएं उन सभी दावों को खारिज करती हैं कि महिलाएं आगे बढ़ रही है। आधी आबादी का संघर्ष अभी आधा है। महिलाओं में चेतना आई है लेकिन उनके संरक्षण के प्रयासों में सरकारें असफल हैं। महिलाएं अधिकारों के प्रति सजग हुई हैं किन्तु वातावरण उसके अनुकूल नहीं है। महिलाएं स्वतंत्रता में जीना चाहती हैं परन्तु मुश्किलें कम नहीं है। प्रचलित कानून और न्याय व्यवस्था में खासे सुधार की जरुरत है, जो यह तय करने के लिये बनें कि महिलाओं को उनके सम्मान से जीने का अधिकार सुनिश्चित हो सके। वर्तमान में महिलाओं पर बढ़ते प्रताड़ना और अत्याचारों के मामलों में इंसाफ का रास्ता काफी दुर्गम है। इंसाफ मांगने का मतलब किसी सुरंग में घुसकर रोशनी की किरण को तलाश करना है। जो समाज और सरकारें महिलाओं के प्रति सेवा और सम्मान का भाव नहीं रखती हैं वहां सृजन के फूल कभी खिल नहीं सकते हैं। महिलाओं के प्रति श्रद्धा का कोमल भाव ही समाज और राष्ट्र की संस्कृति को संवर्धन प्रदान कर सकता है।

 

- डा.गोपा बागची

1 Like

radhika (CA FINAL ) (223 Points)
Replied 14 March 2011

Really very nice article about women's sir.

Thanku.

1 Like


Leave a reply

Your are not logged in . Please login to post replies

Click here to Login / Register  

Join CCI Pro


Subscribe to the latest topics :

Search Forum: