Comment on 'Kolaveri Di' (in Hindi)

Vivek (CA ) (2368 Points)

13 December 2011  

आज सुबह शहर के एक अखब़ार में 'कोलावेरी दी 'पर जनमत प्रकाशित हुआ . विषय था की यह गीत लोकप्रिय प्रसार तंत्र की वजह से हुआ या इसकी धुन की वजह से . मेरे मन ने इस शब्द को पकड़ कर इसकी कुछ और ही परिभाषा गढ़ दी.'कोलावेरी दी' माने 'जानलेवा गुस्सा' भले ही इस गीत में प्रेमिका की बेवफाई पर यह 'कोलावेरी दी' है पर हकीक़त में आज इन्सान के मन में किसी न किसी रूप में 'कोलावेरी दी' उबल ही रहा है कहीं इसका हिंसात्मक रूप बाहर आ रहा है तो कहीं घुटन भरा निर्णय जो स्वयं की जीवन लीला समाप्त कर रहा है .आख़िर यह 'कोलावेरी दी ' क्यों ? कहाँ जाकर रुकेंगे हम ? क्या इसका कोई समाधान हो सकता है ? इसी प्रश्न को तलाशती मेरी ये कविता

 
 
 
कोलावेरी दी
 
 
घड़ी के काँटों के साथ रेस लगाते हम
दौड़ते-भागते न रहते हर वक़्त
कुछ पल ठहरते ,देखते ,महसूस करते हर पल को
तो आज मन में 'कोलावेरी दी ' नहीं होता
 
जो सदा रहते है अपने साथ
कुछ पल बिताते ,सुनते उनकी बात
तो मन में 'कोलावेरी दी 'नहीं होता
 
जीवन की आपाधापी में भूल न जाते
अपनों को -अपने को ,माँ ,बच्चों,मित्रों को
तो मन में आज 'कोलावेरी दी' नहीं होता
 
क़ामयाब होने की धुन में भूल गए
ख़ुद की आवाज़ ,जो सुन पाते सुकून का संगीत
तो मन में आज 'कोलावेरी दी ' नहीं होता
 
माना कि इत्मीनान कर लेने से रूकती है तरक़्की
पर कोई तो मंज़िल तो तय करनी होगी
जब हम सोचे कि हाँ यही..यही वो मुकाम है जहां
ज़माना बिना बेसब्र हुए पहुँच सकता है
अपने को साबित कर सकता है
 
जो एक बार यह तय कर लें
तो फिर मन में काहे का शोर
काहे की बेसब्री,तूफ़ान और कोलाहल
और काहे की 'कोलावेरी ,कोलावेरी ,कोलावेरी दी'
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