Bomb Blast ............ Must read


(Guest)

ये सिलसिला दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, जयपुर, बंगलोर और अब अहमदाबाद तक बदस्तूर ज़ारी है। दुश्मन और शातिर और चालाक होता जा रहा है और हम वहीं के वहीं हैं। कुछ भी नहीं बदला और लगता है कि हम चुपचाप से इसे अपनी तकदीर मानकर अपने शहर की बारी का इंतज़ार करते हुए फिर अपने काम धंधों पर निकल पड़ेंगे। जिनके पास कुछ कर सकने के अधिकार या दायित्व है वो लिप सर्विस के आलावा और कुछ नहीं कर रहे। करते होते तो अब तक इन पिछले धमाकों से जुड़े अपराधियों को अब तक कटघरे तक ला चुके होते।

बार बार बात ग्राउंड इनटेलिजेंस और सही मात्रा में पुलिसिंग ना होने की होती है तो पुलिस बल में रिक्तियों को हर राज्य भरने में आतुरता क्यूँ नहीं दिखाता? क्या इसके लिए राज्य व केंद्र सरकारें दोषी नहीं हैं ? आतंकवाद के बीजों को हमारे दुश्मन देश में बोने को तैयार हो जाते हैं और आप यह कह कर बच निकलते हैं कि इनके पीछे सामाजिक आर्थिक समस्याएँ भी हैं। पर क्या देश की आम जनता ने इस समस्याओं का निवारण करने से हमारे नेताओं को रोका है। नहीं रोका फिर भी ख़ामियाजा इसी आम जनता को सहना पड़ता है।

पर सवाल वही है जो दो साल पहले था। आखिर कब तक ऐसी त्रासदियाँ हमारी जनता सहती रहेगी ? कैसे मूक दूर्शक बने रह सकते हैं हम सब आखिर कब तक?


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ईश्वर अल्लाह तेरे ज़हाँ में
नफरत क्यूँ है ? जंग है क्यूँ ?
तेरा दिल तो इतना बड़ा है
इंसां का दिल तंग हैं क्यूँ ?















कदम कदम पर, सरहद क्यूँ है ?
सारी जमीं जो तेरी है
सूरज के फेरे करती
फिर क्यूँ इतनी अंधेरी है ?

इस दुनिया के दामन पर
इंसां के लहू का रंग है क्यूँ ?
तेरा दिल तो इतना बड़ा है
इंसां का दिल तंग हैं क्यूँ ?














गूंज रही हैं कितनी चीखें
प्यार की बातें कौन सुने ?
टूट रहे हैँ कितने सपने
इनके टुकड़े कौन चुने ?

दिल की दरवाजों पर ताले
तालों पर ये जंग है क्यूँ ?
ईश्वर अल्लाह तेरे जहाँ में
नफरत क्यूँ है? जंग है क्यूँ ?
तेरा दिल तो इतना बड़ा है
इंसां का दिल तंग हैं क्यूँ ?

जावेद अख्तर















हम सब बहुत खिन्न हैं, उदास हैं इन सवालों को दिल में दबाये हुए । पर जानते हैं इन सब बातों का कोई सीधा साधा हल नहीं है। घृणा और सीमा रहित समाज की परिकल्पना अभी भी कोसों दूर लगती है। अपनी जिंदगी में ऍसा होते हुये देख पाए तो खुशकिस्मती होगी!