तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
उजालों में रहो मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो.....
Santhosh Poojary (SIEMPRE AHÍ PARA TI) (15607 Points)
08 October 2014
Vandana J Doshi
(Practising Company Secretary)
(12562 Points)
Replied 09 October 2014
Stranger
(.)
(5531 Points)
Replied 14 October 2014
Superb..thanx for sharing such a beautiful poem santhosh ji..